अवधी में कहावत:संशोधन के बीच अंतर

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# अधाधुन्ध दरबार माँ गदहा पँजीरी खाँय। (उदारता का नाजायज फायदा उठाने पर प्रयुक्त किया जाने वाला कहावत)
# कत्त्थर गुद्दर सोवैं। मरजाला बैठे रोवैं। (कथरी गुदड़ी ओढ़ने वाला आराम से सो रहा है लेकिन फैन्सी कपड़ों वाला जाड़े से ठिठुर रहा है।)
# काम नहीं कोउ का बनि जाय। काटी अँगुरी मूतत नाँय। (यदि किसी की कटी हुई उँगली इनके मूतने से ठीक हो जाए तो ये वह भी नहीं करेंगे।)
# करिया बाम्हन ग्वार चमार। इन दून्हों ते रह्यो होसियार।
# खरी बात जइसे मौसी का काजर।
# गगरी दाना। सुद्र उताना।
# घर माँ नाहीं दाने। अम्मा चलीं भुनाने।
# घातै घात चमरऊ पूछैं, मलिकौ पड़वा नीके है। (पड़वा मर रहा है। अगर मर गया हो चमार उसे खाल के लिये ले जायेगा।)
# जग जीतेव मोरी रानी। बरु ठाढ़ होय तो जानी।
# जस मतंग तस पादन घोड़ी। बिधना भली मिलाई जोड़ी।