महाकवि घाघ:संशोधन के बीच अंतर

Created page with "'''महाकवि घाघ''' अवधी भाषा केर साहित्यन इन कै बड़ी ऊंची जगहा है उनके अं..."
 
No edit summary
पंक्ति १:
'''महाकवि घाघ''' अवधी भाषा केर साहित्यन इन कै बड़ी ऊंची जगहा है उनके अंदर खेती केर और मनई मनई के जीवन से सम्बंधित तमाम चीजन केर बड़ी अद्भुत जानकारी रही| मनई के रहन सहन उनके खेती पाती और तबियत के बारे मा घाघ जी जौन कहिन ऊ सब वैज्ञानिक रूप मा सही पावा गवा|
 
== जीवन परिचय ==
घाघ जी के जनम स्थान और उनके समय के बारे में विद्वानन मा बड़ा मतभेद है. कुछ जने उनका गोंडा कय बतावत है, कुछ जने बिहार कय| मुला बहुत विद्वानै घाघ केर जनम सं. 1753 वि. मानत है| घाघ कय असली नाम के बारे मा कुछ खास नाही पता लागी पावा है| श्री रामनरेश त्रिपाठी जी अपनी खोजन के आधार पै घाघ का ब्राह्मण (देवकली दुबे) मानत है। उनके अनुसार घाघ कन्नौज के चौधरी सराय के रहै वाले रहे| कहा जात है कि घाघ हुमायूँ के दरबार मा गये रहे। हुमायूँ के बाद उनका सम्बन्ध अकबर से भी रहा। अकबर कला संगीत अउर गुण केर बड़ा पारखी रहा| विद्वानन की सम्मान करत रहा। घाघ केर गुन से अकबर भी प्रभावित भवा और उपहार मा घाघ का तमाम धन और कन्नौज के लगे जमीन दिहिस, जिपर घाघ गाँव बसाइन| ओकर नाम ‘अकबराबाद सराय घाघ’ रखा गवा। सरकारी कागजन मा अबहिऊ ऊ गाँव केर नाम ‘सराय घाघ’ है। ई कन्नौज स्टेशन से लगभग एक मील पच्छूं मा है। अकबर घाघ का ‘चौधरी’ केर उपाधि दिहिन रहै। यही लिए घाघ के घर परिवार वाले अबहिऊ उनका चौधरी कहत हैं। ‘सराय घाघ’ का दूसर नाम ‘चौधरी सराय’ है। घाघ के मेहरारू कय नाम तौ नहीं मालूम है मुला उनके दुई लरिका रहे -मार्कण्डेय दुबे और धीरधर दुबे। ई दूनौ लरिकन के खानदान मा दुबे लोगन के बीस पच्चीस घर अबहिउ वही बस्ती मा हैं। मार्कण्डेय के खानदान में बच्चूलाल दुबे, विष्णु स्वरूप दुबे तथा धीरधर दुबे के खानदान में रामचरण दुबे और कृष्ण दुबे वर्तमान मा हैं। ई लोग घाघ की सातवीं-आठवीं पीढ़ी में अपने का बतावत हैं। ई लोग कबहू दान नाही लेत है| यनकर कहब है कि घाघ अपने घरम करम के बड़े कट्टर रहे| जिहिके कारन उनका अंत मा मुग़ल दरबार से हाटाय दीन गवा रहै और उनके जमींदारी केर अधिकतर भाग जब्त कै लीन गवा रहे।
 
== महाकवि घाघ केर कुछ कहावतें और उनकर मायने: ==
 
सावन मास बहे पुरवइया।
Line ७३ ⟶ ७४:
* मार के टरि जाय, खाय के परी जाय
 
* माघ क ऊखम जेठ क जाड, पहिलै परखा भरिगा ताल।<br />
 
कहैं घाघ हम होब बियोगी, कुआं खोदिके धोइहैं धोबी।।
 
* माघ-पूस की बादरी और कुवारा घाम<br />
 
ई दूनौ का जो सहे ऊ करे परावा काम
 
* ओछे बैठक ओछे काम, ओछी बातें आठो जाम।<br />
 
घाघ बताए तीनो निकाम, भूलि न लीजे इनकौ नाम।।
 
Line ९० ⟶ ९४:
* गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।
 
* सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी।<br />
 
जो पचास का सौ न तुलै, दव घाघ को गारी।।