महाकवि घाघ:संशोधन के बीच अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति ७४:
* मार के टरि जाय, खाय के परी जाय
* माघ क ऊखम जेठ क जाड, पहिलै परखा भरिगा ताल।<br /> कहैं घाघ हम होब बियोगी, कुआं खोदिके धोइहैं धोबी।।
* माघ-पूस की बादरी और कुवारा घाम<br /> ई दूनौ का जो सहे ऊ करे परावा काम▼
* ओछे बैठक ओछे काम, ओछी बातें आठो जाम।<br /> घाघ बताए तीनो निकाम, भूलि न लीजे इनकौ नाम।।▼
▲* माघ-पूस की बादरी और कुवारा घाम<br />
▲ घाघ बताए तीनो निकाम, भूलि न लीजे इनकौ नाम।।
* खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।
Line ९४ ⟶ ८८:
* गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।
* सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी।<br /> जो पचास का सौ न तुलै, दव घाघ को गारी।।
* उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान।
|