बिरहा कै नामाकरण बिरह से भवा है।अवध समाज मे बिरहा यादव/ अहिर जाती कै लोग गावत है।बिरहा कै एक गायन शैली होत है।यकर बिषय वस्तु कारुणिक होत है बकिर आजकल बिरहा के बिषयवस्तु मे विविधता आइगा है।बिरहा दुई मेर होत है चार कडि वाला औ रामायण , महाभारत या आउर कौनो कथात्मक ।बिरहा अकसर कोमल भाव मे व्यक्त होत है तौ कौनो वीर रस युक्त भी होत है।बिरहा घाँस काट्त कै गाय भैस चरावत कै औ अन्य सामाजिक धार्मिक अनुस्थान के जमघत मे गावा जात है। बिरहा कै एक कडी:

पन्चो सुनौ लगाकर कान,

कही नारी अम्विदा कै बयान,

नारी अम्विदा रहली बारी औ कुवांर,

पुजनवा शंकर भोला कै करैं,

नारी रही अम्बिदा अनुसुइयक बहिनिया ,

रोजरोज बारिउ नारी मन्दिर मा दियनवा,

दियना बेगर जलाये न किहेउ भोजनवा ......