अवधी कय बात होय अउर एक नाम न आवे ऐसन नहीं ह्वे सकत है| ऊ नाम है अवध क्षेत्र कय गंगा जमुनी तहजीब के मसीहा रफ़ीक सादानी| बिना कौनो स्कूली पढ़ाई किहे रफ़ीक अवधी व्यग्य के ऊ पायदान तक पहुचे जहाँ तक पहुचे खातिर बड़े बड़े पढ़े लिखे सपना देखत है| रफ़ीक कय जनम सन १९३३ मा बर्मा ( आज के म्यांमार ) मा भवा रहै| इनके वालिद हुवां पय इत्र कय कारोबार करत रहे| दोसरे विश्व युद्द मा उनके कुल कारोबार तहसनहस ह्वे गवा अउर इनके वालिद का हुवा से पलायन करइ का परिगा| बर्मा छोड़ कय उनके वालिद अपने पूरे कुनबा के साथ उत्तर परदेस के फ़ैजाबाद मा आय के बस गे| हियाहीं से रफ़ीक के मन मा अवधी कय बिरवा निन्गरै का सुरु किहिस| ई बड़े अचरज कय बात रही कि दुनिया का व्यंग अयुर हंसी लुटावे वाले रफ़ीक खुद बड़ी मुफलिसी अयुर झंझटन मा जिंदगी गुजारीन| येकर अंदाजा यही से लगावा जाय सकत है कि यनकर यक लरिका अयुर यक भाय मुफलिसी के चलते दुनिया छोड़ दिहिन| मुल रफ़ीक अपनी मुफलिसी अयुर मजबूरी का आपन ताकत बनाईन| दुनिया का हंसावे वाली ई आवाज़ ९ फ़रवरी सन २०१० का एक सड़क दुर्घटना मा हमेशा हमेशा के लिए शांत ह्वे गय|