अंकोरवाट मंदिर
अंकोरवाट मंदिर अंकोरवाट (खमेर भाषा : អង្គរវត្ត) विश्व कय सबसे बड़ा हिन्दू मन्दिर परिसर अव विश्व कय सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक होय। ई कंबोडिया कय अंकोर में है जवने कै पुराना नाव 'यशोधरपुर' रहा।
अंकोरवाट मंदिर | |
नाव: | अंगकोरवाट मंदिर |
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बनावेवाला: | सूर्यवर्मन द्वितीय |
जीर्णोद्धारक: | जयवर्मन सप्तम |
बने कय साल : | १११२ से ५३ ईस्वी कय मध्य |
देवता: | विष्णु |
वास्तुकला: | ख्मेर या चोल शैली |
जगह: | कंबोडिया |
परिचय
सम्पादनअंग्कोरथोम औ अंग्कोरवात प्राचीन कंबुज कय राजधानी औ ओकरे मंदिरन् कय भग्नावशेष कय विस्तार होय। अंग्कोरथोम औ अंग्कोरवात सुदूर पूरुव कय हिंदचीन में प्राचीन भारतीय संस्कृति कय अवशेष होय। ईसवी सदिन् कय पहिले से सुदूर पूरुव कय देशन् में प्रवासी भारतीय् कय कयु उपनिवेश रहा। हिंदचीन, सुवर्ण द्वीप, वनद्वीप, मलाया जइसन जगहि में भारतीय लोग कालांतर में अनेक राज्यन् कय स्थापना कीहिन। वर्तमान कंबोडिया कय उत्तरी भाग में स्थित ‘कंबुज’ शब्द से व्यक्त होत है, कुछ विद्वान भारत कय पश्चिमोत्तर सीमा पे बसय वाले कंबोजन् कय संबंध इही प्राचीन भारतीय उपनिवेश से बतावत हयँ। अनुश्रुति कय अनुसार इ राज्य कय संस्थापक कौंडिन्य बाभन रहा जेकर नाव वहँ कय एक संस्कृत अभिलेख में मिला है। नवां शताब्दी ईसवी में जयवर्मा तृतीय कंबुज कय राजा भय औ ओनही u लगभग ८६० ईसवी में अंग्कोरथोम (थोम का माने 'राजधानी' होय) नावँ कय आपन राजधानी कय सुरुवात किहीन। राजधानी ४० वर्ष तक बनत रहा औ ९०० ई. कय लगभग तैयार होइ गवा। ओकरे निर्माण कय संबंध में कंबुज के साहित्य में ढेर किंवदंति प्रचलित है।
पच्छु कय सीमावर्ती थाई लोग पहिले कंबुज कय समेर साम्राज्य कय अधीन रहें लेकिन १४वां सदी कय मध्य मे ओन कंबुज पे आक्रमण करय लागिन औ अंग्कोरथोम कय कयु दाई जीतीन औ लूटिन। तब लाचार होईकै ख्मेरन् कय आपन उ राजधानी छोडेक परा। फिर धीरे-धीरे बाढ़ से उ नगर बर्बाद होई गवा औ ओकर सत्ता अंधकार में विलीन होइ गवा। नगऱवो कुल टूटिकय खंडहर होइ गय। १९वा सदी कय अंत में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक पाँच दिन कय नाँय कय यात्रा से वँह पहुचा अव उ नगर कय अउर ओकरे खंडहरन् कय पुनरुद्धार किहीस। नगर तोन्ले सांप नाव कय महान सरोवर कय किनारे उत्तर कय ओर ढेर साल से वईसय सुता परा रहा जहाँ नगीचवे , दूसरे तट पे, विशाल मंदिरन् कय भग्नावशेष खड़ा रहा। आज कय अंग्कोरथोम एक विशाल नगर कय खंडहर होय। ओकरे चारों ओर ३३० फुट चौड़ा गहिर गड़हा है जवन पानी से भरा रहत रहा। नगर औ गड़हा कय बीचेम एकठु बडहन कय वर्गाकार प्राचीर नगर कय रक्षा करत है।प्राचीरमा ढेर भव्य औ विशाल महाद्वार बना हैं। महाद्वारन् कय ऊँच शिखरन् कय त्रिशीर्ष दिग्गज अपने मस्तक पे उठाएक खड़ा हैं। दुसर-दुसर दरवाजा से पाँच दुसर-दुसर राजपथ नगर कय बिच तक पहुँचत हैं। बहुत किसीम कय आकृतिन् वाला सरोवरन् कय खंडहर आज आपन जीर्णावस्था में भी निर्माणकर्ता कय प्रशस्ति गावत हैं। नगर कय ठीक बीचोबीच शिव कय एक विशाल मंदिर है जवने कय तीन भाग हैं। प्रत्येक भाग में एक ऊँच शिखर है। मध्य शिखर कय ऊँचाई लगभग १५० फुट है। इ ऊँच शिखरन् कय चारों ओर बहुत छोट-छोट शिखर बना हैं जवन संख्या में लगभग ५० हैं। इ शिखरन कय चारों ओर समाधिस्थ शिव कय मूर्ति स्थापित अहै। मंदिर कय विशालता औ निर्माण कला आश्चर्यजनक है। ओकरे देवालीन् कय पशु, चीरई, फ़ुल अव नृत्यांगना जैसन ढेर आकृतिन् से अलंकृत कई गा है। ई मंदिर वास्तुकला कय दृष्टि से विश्व कय एक आश्चर्यजनक वस्तु होय औ भारत कय प्राचीन पौराणिक मंदिरन् कय अवशेषन् में तो एक्कै है। अंग्कोरथोम कय मंदिर औ भवन, ओकरे प्राचीन राजपथ औ सरोवर कुल उ नगर कय समृद्धि कय सूचक हैं।
१२वा शताब्दी कय लगभग सूर्यवर्मा द्वितीय अंग्कोरथोम में विष्णु कय एक विशाल मंदिर बनवाईन। इ मंदिर कय रक्षा भी एक चतुर्दिक गड़हा करत है जवने कय चौड़ाई लगभग ७०० फुट है। लम्मे से गड़हा बडा ताल जैसन देखाअ है। मंदिर कय पच्छु कय ओर इ गडहा कय पार करेक लिए एक पुल्ह बना है। पुल्ह कय पार मंदिर में हलेक लिए एक विशाल दुआर बना है जवन लगभग १,००० फुट चौड़ा है। मंदिर बहुत बडा है। एकरे देवालीन पे कुल रामायण मूर्तिन् में बनावा है। इ मंदिर कय देखेस से जानी परत है कि विदेशन् में जाईकै भी प्रवासी कलाकार लोग भारतीय कला कय जियाए रहे।
स्थापत्य
सम्पादनख्मेर शास्त्रीय शैली से प्रभावित स्थापत्य वाला इ मंदिर कय बनावेक काम सूर्यवर्मन द्वितीय ने सुरु किहिन लेकिन ओन एका पुरा नाई कई पाइन। मंदिर कय काम ओनकय भएने अव उत्तराधिकारी धरणीन्द्रवर्मन कय शासनकाल में पुरा भय। मिश्र अव मेक्सिको कय स्टेप पिरामिडन् कय जैसन ई सीढ़ी पे उठत गा है। एकर मूल शिखर लगभग ६४ मीटर ऊँच है। एकरे अलावा अऊर कुल आठों शिखर ५४ मीटर उँच हैं। मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लम्मा पाथर कय देवाल से घेरान है, ओकरे बहरे ३० मीटर खुला जमिन औ फिर बहरे १९० मीटर चौडा गड्हा है। विद्वानन् कय अनुसार ई चोल वंश कय मन्दिरन् से मिलत जुलत है। दक्खिन पच्छु में स्थित ग्रन्थालय कय साथे इ मंदिर में तीन वीथि हैं जवने मे भितर वाला ढेर ऊंचाई पे हैं। निर्माण कय कुछ ही वर्ष बाद चम्पा राज्य इ नगर कय लूटिस। ओकरे बादमे राजा जयवर्मन-७ नगर कय कुछ किलोमीटर उत्तर में फिर से बसाईन। १४वा या १५वा शताब्दी में थेरवाद बौद्ध लोग एका अपने नियन्त्रण में लई लिहिन।
संदर्भ
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